मुक्तक

July 10, 2016 in Other

न मैं तुलसी जैसा हूँ ,और न मैं खुसरो जैसा हूँ,
मेरी कल्पना अपनी है ,सच नहीं दुसरो जैसा हूँ ।

हम सभी एक ही ग्रन्थ के ,हाँ हर पन्नो सिमटे है,
छन्दों में जो सिमट जाऊ तो,सुंदर बहरो जैसा हूँ ।।

लालजी ठाकुर

हक़ मेरी माँ को होता

May 26, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

“हक मेरी माँ को होता”

 

मेरी तकदीर में जख्म कोई न होता,

अगर तकदीर बनाने का हक मेरी माँ को होता,

 

मेरी तस्वीर पे आज धूल न होता,

अगर तस्वीर पोछने का हक मेरी माँ को होता,

 

मेरी आँखों में अश्क आया न होता,

अगर आँख सजाने का हक मेरी माँ को होता,

 

मेरी तकफिन में कोई वहम न होता,

अगर तकफिन बनाने का हक मेरी माँ को होता,

 

मेरी इमारत दुःखो से भरा न होता,

अगर इमारत भरने का हक मेरी माँ को होता,

 

मेरी नसीहत कोई फर्मान न होता,

अगर नसीहत देने का हक मेरी माँ को होता,

 

मेरी मुअल्लिमा का ऐसा तक्रिर् न होता,

अगर मुअल्लिमा बनने का हक मेरी माँ को होता,

 

लालजी ठाकुर दरभंगा

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