बुद्धिमान बनिए।।

     — प्रद्युम्न चौरे।।


आप लोगों ने अपने  घरो में अक्सर कुछ ऐसे रीती रिवाज़ों को देखा होगा जो आपको कभी कभी बड़े बेतुके नज़र आते होंगे।

और आप सोचते होंगे की आखिर ऐसे  रीती रिवाज़ आए कहाँ से और आखिर वो क्या कारण है जिसकी वजह से हमारा समाज आज तक  इनका पालन करता आ रहा है। आप इस सवाल को अपने परिवार के बुद्धिजीवियों के सामने रखते होंगे और निश्चित  ही  आपको एक काल्पनिक उत्तर प्राप्त होता होगा। जिसे हम लोग एक कथा या  कहानी भी कह  सकते है।

पुरानी एवं सदियों से चली आ रही प्रथाओं का पालन बिना सोचे समझे किया जाय तो ये मानवता को शर्मिंदा करने जैसा होगा।

एक कथा के माध्यम से अपनी बात स्पष्ट किये देता हूँ।

एक बार एक घर में पूजा हो रही थी,पूजा के दौरान एक बिल्ली बार बार पूजन में खलल डाल रही थी परेशान होकर उस घर की सबसे बड़ी महिला ने उस बिल्ली को पकड़कर उसे एक डलिया के नीचे डाल दिया।

जब उस घर की बहु वहां पहुंची तो उसने देखा की एक बिल्ली को डलिया के नीचे रखा गया है।

बिना सोचे समझे और अपनी सास द्वारा किये गए उस काम के कारण को जाने बिना उसने भी अगले वर्ष एक बिल्ली को पकडा और उसे डलिया के नीचे डाल दिया

और इस प्रकारअपनी कुछ पल की परेशानी को दूर करनें के लिए सास ने जो काम किया था बहु ने उसे परम्परा बना दिया और शायद ऐसी परम्पराओं को हम रूढ़िवादी परम्पराएँ कहते हैं जिनका पालन करना कम से कम हम युवाओं के लिए वर्जित है।

सभी युवाओं से में कहना चाहूँगा के-

“हाथ में हथियार नहीं मगर जिगर में दम है।

इन निहत्थे हाथों में धारदार कलम है।।

समाज के हर ज़ख्म पे लगा दो तुम ही मरहम

रूढ़िवादी खंजरों पर चला दो अब अपनि कलम।।”

 यदि आप  बिना खुद विचार किये बड़ो द्वारा बताय गय तथ्य को पूरी तरह सत्य मान  लेते है तो आप  एक गलत राह  पर अग्रसर है ऐसा कहना मेरी नज़र में गलत नहीं  होगा। आपको यह बात में एक उदाहरण देकर समझाने  का प्रयास करता हूँ एक बार बचपन में स्वामी विवेकानंद अपने  मित्रो के साथ आम के  वृक्ष से आम्रफल तोड़ कर खा रहे थे तभी अचानक उस वृक्ष का मालिक वहां आ गया और सभी बच्चो को आगाह किया की अगली बार  यदि  वो वृक्ष के  समीप भी आय तो  वृक्ष का रखवाला एक खतरनाक दानव उनकी गर्दन मरोड़ देगा ,मालिक की बात सुनकर सभी  बच्चे  डर गय और वृक्ष के समीप जाना छोड़ दिया मगर स्वामीजी ने ऐसा नहीं किया वे  जाकर उस वृक्ष की एक शाखा  पर  बेठ गए और  अपने मित्रो से कहा देखो कोई भी दानव नहीं है। तुम सब  मुर्ख हो बिना खुद जांच किये कभी भी किसी के कथन पर विश्वास न किया करो। स्वामीजी के ये साधारण शब्दों ने  भविष्य में समस्त संसार के समक्ष एक  बहुत  बड़े  कथन  को जन्म दिया -“किसी भी बात पर सिर्फ इस लिए विश्वास न करो क्योंकि वो किसी किताब में लिखी है या किसी महान व्यक्ति ने उसे कहा  है। अपने लिए सत्य की खोज स्वयं करों इसी को अनुभूति कहते है।”भारत के पूर्व राष्ट्रपति  प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ.ऐ पि जे अब्दुल कलाम भी कहा  करते थे जो  जीवन भर दुसरो को पड़ता है  दुसरो की    सुनता है वो पड़ा लिखा कहलाता है  मगर जो खुद की सुनता है खुद के विचार समाज के  समक्ष रखने की क्षमता रखता है वो बुद्धिमान कहलाता है।

 मै इन दोनों महान व्यक्तियों की बात को कुछ इस प्रकार कहता हूँ की  अनुभव हर एक के जीवन में आते है मगर उन अनुभवों  को अनुभूति में बदलने  वाले ही  सफलता को प्राप्त होते है।

मै ये नहीं कह रहा हूँ की आप दुसरो को पड़ना या सुन्ना ही छोड़ दे मगर सिर्फ पड़े नहीं लिखे भी,सिर्फ सुने ही नहीं सोचे भी। मै तो कहता हूँ की विचार सुन्ना अच्छा है सारथक  विचारो को जीवन में उतारना और  भी अच्छा है मगर विचारो को अपने मन में उतारकर उन पर विचार करके फिर  अपने विचार व्यक्त करना सर्वश्रेष्ठ है। तो अब याद रखिये की  जीवन में हमेशा विचारशील रहे  दिमाग को विचारो से हमेशा भरा रहने दे और हा  विचार सार्थक और समाज के हित में  होने चाहिए क्योंकि  यदि खाली दिमाग को ये संसार  शैतान का घर कहता है तो बुरे विचारो से भरे दिमाग को में शैतान की हवेली कहूँगा एक भूतियां हवेली जहां से लगातार नकरात्मक आवाज़े आती रहती है। मुझे जो कहना था में कह चूका हूँ अब आगे दिमाग आपका मन आपका विचार आपके पड़े लिखे आप सभी है अब क्यों न बुद्धिमान बना जाय ।  अंत  में  काव्यात्मक रूप  में  अपनी  बात कहूँगा के-

“बचपन में बच्चा था बड़ा हुआ
तो खुद को  पिता पाया
इतना  दूर मै आ गया
तेरे सफर में  ऐ  ज़िन्दगी
मगर  खुद को जान न पाया
खुद को जान न पाया
ऐसा न हो के तुहारे विचार
तुम में ही कही दफ़न हो
और जब खोजने  निकलो
तो शरीर  पे कफ़न हो
शरीर पे कफ़न हो”

विचार कीजियेगा। ;-]

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