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अंधा समाज और अंधी कानून

खुद को साध रहा जो मानव
औरों के कल्याण को।
सुख-सविधा और परिजन
त्याग दिए अरमान को।।
ऐसे साधु सन्यासी को
पीट -पीटकर मार दिया।
दुख इतना है यही है रोना
आस्था को भी मार दिया।।
जिस कानून के रक्षक ने
ऐसा कहर वरपाया है।
ऐसे कानून व्यवस्था से
न्याय भला कोई पाया है।।
अंधा समाज और अंधी कानून
पर विश्वास करें अब कैसे?
‘विनयचंद ‘इस निन्दनीय कृत्य
को मुआफ करें अब कैसे?

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