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अजब ग़जब सी दुनिया

ये दुनिया भी गज़ब का मेला,
इतनी भीङ पर हर कोई अकेला,
कभी हँसना,तो कभी है रोना,
कुछ खोना,तो कुछ है पाना।।

खिलखिलाते कुछ चेहरे हैं,
कुछ ग़म छुपाते सेहरे हैं,
सर पर छत नीले अम्बर का,
जीवन ये सागर खुशियों का।।

साँसों की सरगम चहुँओर,
झरनों की कलकल का शोर,
हर ओर मानो हो मौसीक़ी,
जमीं-आसमान की आशीकी।।

मस्तानी हवा कहीं पत्ते फङफङाती,
कही खङी फसल को खुशी से लहलहाती,
कभी चिरैया से करती अठखेलियां,
कभी छेङती गेहूँ की बालियाँ ।।

रात में चंदा की मनमानी,
चांदनी को करती रूमानी,
चटक चांदनी का अल्हड़पन,
रोम रोम में भर देता दीवानापन।।

रंगबिरंगी तितलियाँ हैं उङती,
हर फूल फूल पे बैठती,
मानों उनसे रंग चुराना,
उन रंगों से फिर दुनिया को रंगना।।

कहीं रेगिस्तान की तपती रेत,
कही नदियों के ठंडे तट,
कही उफनता सागर का रोष,
कभी बिजली दिखाती आक्रोश ।।

नदी,सागर से मिलने को रहती बेताब,
निर्मल प्यार ले बहता उसका आब,
सागर पर आता धरा से मिलने,
उसे बस छू भर कर वो लगता भागने।।

प्रकृति का करतब निराला,
कहीं अंधेरा,तो कहीं उजाला,
ऊपर है बादलों का रेला,
नीचे धूप छांव का खेला।

अजब गजब सी दुनिया हमारी,
प्रकृति ने प्यार से संवारी,
देते रहतें अनेकों भेंट इसके हाथ,
ढेरों प्रेम और प्यार निस्वार्थ ।।

बचपन बीता, आई जवानी,
फिर भी उसकी वही रवानी,
बचपन में जिस आँचल में खिलाती है,
अंत में,उसी आँचल में,चिरनिद्रा में सुला लेती है ।।

-मधुमिता

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