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अभी भी मेरी आंखों में

कदम हैं अब भी हरकत में कहीं ठहरा नहीं हूं मैं,
यक़ीनन टूट चुका हूं मगर बिखरा नहीं हूं मैं l

अभी भी आईने में खुद को अक्सर ढूढ लेता हूं,
सुनो ऐ गर्दिश-ए-हालात बस चेहरा नहीं हूं मैं l

अभी भी मेरे दम से ही मेरी परवाज़ होती है,
कभी रहम-ओ-करम पर आज तक फहरा नहीं हूं मैं l

अभी भी मेरी आंखों में मुहब्बत डूब सकती है,
तुझे ऐसा क्यूं लगता है कि अब गहरा नहीं हूं मैं l

मेरी गर मौज निकली तो तेरा सब डूब जायेगा,
मैं “सागर” अब भी “सागर” हूं कोई सहरा नहीं हूं मैं ll

// सहरा=रेत का मैदान/रेगिस्तान //

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-Er Anand Sagar Pandey

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