जज़्बात
यूँ अपने जज़्बात नुमाया क्यों करते हो ! मेरी ख़ातिर अश्क बहाया क्यों करते हो !! क़िस्मत के लिक्खे से मैं भी वाकिफ़ हूँ ! बातों से मुझको बहलाया क्यों करते हो !! जब साथ तुम्हारा है ही नहीं मुक़द्दर में ! फिर मेरे ख़्वाबों में आया क्यों करते हो !! भूल के तुमको जिसने जीना सीख लिया ! उसकी ख़ातिर नींदें ज़ाया क्यों करते हो !! अपना बनकर दुनिया ज़ख़्म लगाती है ! सबको अपने राज़ बताया क्यों करते हो !! पत्थर दिल इंसानो... »