अर्जियां लाया हूँ लिखकर चेहरे पर अपने,
कलम को अपनी ज़रा विश्राम दिया है,
झुकाया नहीं है आँखों को तेरे दर पर आज,
पलकों को अपनी ज़रा आराम दिया है,
छोड़ कर बैठा हूँ आज मन्ज़िल अपनी,
कदमों को अपने ज़रा ठहराव दिया है,
थक चुका हूँ बोलते बोलते कुछ इस तरह कि,
होंटो को खामोशी का अब, ज़रा हथियार दिया है॥
– राही