पृथ्वी और आकाश में एक पुरुष का वास !
कण-कण जिससे व्याप्त है, जीवन, मृत्यु, प्रकाश !!
पूरब कोई पश्चिम कहे, पृथ्वी और आकाश !
कण-कण में मुझको दिखे, आगे पीछे पास !!
कर्म मध्य वह व्याप्त है, निराकार साकार !
गुण-अवगुण से परे है, तत्व-तत्व आधार !!
किसकी पूजा मैं करू, किसके गाऊं गीत !
मेरे भीतर व्यापत है, मेरा प्रियतम मीत !!
प्यासा मूरख क्यों खड़ा, चल नदिया के पास !
पथ की चिंता छोड़ तू, दौड़ हमारे साथ !!