अश्क़
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बातों ही बातों में
पलकों की दामन में-
मोतियों से कुछ दिख पड़ते
“अश्क़”हैं ये–बुलबुले अरमानों के
कभी चहकती खुशियाँ
कभी ख़्वाब लुटतें हैं
चेहरे खिल जाते,कभी–
भीग जाती पलकें हैं
मुस्कुराते–कभी दहकते दिल
हँसी कभी सिसकती महफ़िल
एहसास की बात है, यारों–
कहीं इनकार छलकाते
कहीं इज़हार छलकते
दास्तां इनकी अजीब है
जुदा-जुदा नसीब है
कभी भिगोते आंखों को
कभी अरमानों को
समय की चक्की में घूमता
भाव–भावना–एहसास
ख़्वाबों–अरमानों का पाश
दिख जाते कभी क़शिश में-
कभी छुपाने की कोशिश में
“अश्क़” बिन रंग के
हैं सभी रंगों में–
ग़म में–खुशियों के संग में
सच्चाई छुपतीं नहीं
रोके से भी-भाव रुकतीं नहीं
धूल जाते गन्दगियाँ मन के
स्वच्छ करके–
स्वयं जाते कहाँ-कुछ कहते नहीं
मिट जाने से ज्यादा–
इन्हें इस बात का गुमान
अपने दम पर कह जाते-
हक़ीक़त–ए–दास्तान
रंजित तिवारी
पटेल चौक,
कटिहार
पिन–854105
बिहार
मोब–8407082012