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अस्तित्व पर सवाल…!!

अभी तक अस्तित्व पर
ना कोई सवाल उठा था
जो देखता था मुझको
बस वाह ! करता था
मेरी खुशियों की झोली
बहुत थी भारी
ख्वाबों में अपना उधार चलता था
किस्मत की लकीरें
मिट गईं अचानक
अस्तित्व पर कई सवाल भी उठे प्रज्ञा !
जितनी मुस्कुराहटें
पड़ी थीं पलंग पर
सारी बिखर गईं और मैं सिमट गई..

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