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आओ तन मन रंग लें

चली बसंती हवाएँ ,

अल्हड़ फागुन संग,

गुनगुनी धूप होने लगी अब गर्म,

टेसू ,पलाश फूले,

आम्र मंज्जरीयों से बाग हुए सजीले,

तितली भौंरे कर रहे ,

फूलो के अब फेरे ,

चहुंँ दिशाओं में फैल रही,

फागुन की तरूणाई,

आओ तन मन रंग लें,

हम मानवता के रंग ,

भेद-भाव सब भूल कर,

आओ खेलें रंगों का ये खेल ,

प्रेम , सौहार्द के भावों से,

हो जाए एक-दूजे का मेल,

होली पर्व नहीं बस रंगो का खेल,

प्रेम , सौहार्द के भावों का है ये मेल ।।

 

 

 

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