बहकावों में छले गए..
कुछ दावों में, वादों में, कुछ बहकावों में छले गए, भोले-भाले कुछ किसान झूठे भावों में चले गए.. खेतों में पगडण्डी की जो राह बनाया करते थे, आज भटक कर वो खुद ही ऐसे राहों में चले गए.. वो ऐसे छोड़ के आ बैठे अपने खेतों की मिट्टी को, सागर को छोड़ सफीने भी बंदरगाहों में चले गए.. थककर किसान ने जीवनभर जिस रोटी को था उपजाया, वो रोटी छोड़के कैसे अब झूठे शाहों में चले गए.. अब तो किसान भी नज़रो में दोतरफा होकर रहते... »