अन्न एवम् जल प्रदान करने वाली,
वसुन्धरा को नमन्।
पृथ्वी के संरक्षण हेतु,
आओ उठाऍं कुछ कदम।
पृथ्वी पर पवन हो रही अशुद्ध,
आओ वृक्ष लगाऍं हम।
इस धरा को और भी,
हरा बनाऍं हम।
आओ पृथ्वी दिवस मनाऍं,
पृथ्वी को हरा-भरा बनाऍं।
धरती माॅं कितना देती है,
क्या कभी अनुमान लगाया है।
मात्र एक बीज बोने पर,
एक वृक्ष उग आया है।
फल, फूल देता है हमको
मिलती उसकी छाया है।
प्लास्टिक आदि कूड़े कचरे से,
मानव ने धरा को मलिन किया।
श्वास अवरुद्ध हुई धरा की,
रक्षा हेतु अब कोई कदम उठाना है।
वृक्षारोपण करना है सबको,
पृथ्वी दिवस मनाना है।
प्रकृति ने यह पृथ्वी,
ऐसी नहीं बनाई थी।
चारों और हरियाली थी,
बहुत ख़ुशहाली छाई थी।
मानव ने अपने हित हेतु,
सब वन-उपवन नष्ट किए
वहाँ बसने वाले जीवों को,
निज स्वार्थ हेतु कष्ट दिए।
संतुलन बिगड़ गया धरा का,
प्रकृति ने प्रकोप बरसाया है।
कोरोना के रूप में,
महारोग यह आया है।
अपनी जीवन शैली में,
अब सुधार हमको लाना है
इस धरा को स्वच्छ बनाना है।
प्रयत्न करेंगे हम सभी तो,
अवश्य सुधार आएगा।
यह धरा ही ना रहेगी तो,
सब धरा का धरा रह जाएगा॥
____✍गीता