Site icon Saavan

इल्म था तब उन्हें मुहब्बत का

गुप्तगू कर चुके हैं गुमसुम से
फिर अदा से बनाया गुलदस्ता
बड़े ही प्यार भरे जाहिल हैं,
आ गए मन में ऐसे आहिस्ता।
इल्म था तब उन्हें मुहब्बत का
जब कहीं नेह की इबादत थी,
वो बुरे थे भले थे जैसे थे,
हमें तो बस उन्हीं की आदत थी।
हो गई थी हमें खजालत तब
जब हमें घूरती निगाहें थी,
कह न पाए थे चाहते थे जो
वो सुलगती सी मन की आहें थी।

Exit mobile version