छोटे से भानिज को अपने साथ
ले आया था अपने शहर मैं,
क्योंकि उसके पापा गंभीर रोग से
पीड़ित होकर चल बसे थे संसार से,
उस दुर्गम पर्वतीय गाँव में
तीसरी- चौथी कक्षा में
प्राइमरी स्कूल जाते
छोटे से बालक की
प्रतिभा को धार देने की सोच रहा था मैं ।
शहर के स्कूल में दाखिला
देते हुए चुनौती भी थी उस बच्चे के सामने,
नए सिरे से सीखने की।
धीरे – धीरे ढाला उसने खुद को
आज कुछ वर्षों बाद
जब दसवीं का
परीक्षाफल आया उसका,
मन प्रसन्न हो गया,
कक्षा में प्रथम,
नब्बे तक प्रतिशत,
ईश्वर ने साथ दिया,
बच्चे की मेहनत ने
कविता लिखने को मजबूर किया ,
ऐसी ही लय और दिशा
भविष्य में बरकरार रहे,
उज्जवल भविष्य हो,
पथ से विपथ न हो,
यही सबका आशीष हो।