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उम्मीदों की गाड़ी

अपने काँधों पर अपनी ज़िन्दगी को उठाना पड़ा,
वक्त के पहिये से कदमों को अपने मिलाना पड़ा,

उलझने बहुत मिलीं दिल से दिमाग के रास्ते यूँ के,
खुद से ही खुद ही को कई बार में सुलझाना पड़ा,

सोंच का समन्दर कुछ गहरा इतना निकला राही,
के उम्मीदों की गाड़ी को लहरों पर चलाना पड़ा।।

राही अंजाना

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