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एक छोटी सी घटना

जब भी तुम्हें लगे की तुम्हारी परेशानियों का कोई अंत नहीं
मेरा जीवन भी क्या जीना है जिसमे किसी का संग नहीं

तो आओ सुनाऊँ तुमको एक छोटी सी घटना
जो नहीं है मेरी कल्पना

उसे सुन तुम अपने जीवन पर कर लेना पुनर्विचार

एक दिन मैं मायूस सी चली जा रही थी
खाली सड़को पर अपनी नाकामयाबियों का बोझ उठाये हुए
इतने में एक बच्चा मिला मुझे (तक़रीबन पाँच साल का)
अपनी पीठ पर नींबू का थैला ढोये हुए
उसने कहा दीदी नींबू ले लो दस रूपये में चार
और चाहे बना लो सौ रूपये में पूरे का आचार
मैं नींबू नहीं खाती थी,मुझे एसिडिटी हो जाती थी
पर कर के उस बच्चे का ख्याल
मैंने बोला , मैं नींबू तो नहीं लूंगी
पर चलो तुमको कुछ खिला देती हूँ
यह सुन वो बच्चा बोला
नहीं दीदी मुझे नहीं चाहिए ये उपकार
वो घर से निकला है मेहनत कर
कमाने पैसे चार
अपनी दो साल की बहन को छोड़ आया हूँ
फुट ओवर ब्रिज के उस पार
जो कर रही होगी मेरा इंतज़ार
के भैया लाएगा शाम को पराठे संग आचार
यह सुन मैं हो गई अवाक्
मैंने पूछा तुम्हारी माँ कहा है
उसने कहा सब छोड़ के चले गए
अब मैं यही फुटपाथ पर रहता हूँ
और दिन में सामान बेचता हूँ
कमाने को पैसे चार
मैं स्तब्ध खड़ी थी,
क्या कहूँ कुछ समझ नहीं पाई
मैंने उस से नींबू ले लिए बनाने को आचार
उसने उन पैसों से पराठे खरीदे चार
उसके चेहरे पे वो मुस्कान देख कर
मेरा हृदय कर रहा था चीत्कार
वो खुद्दार तथा, और ज़िम्मेदार भी
इतनी छोटी से उम्र में
अपना बचपन छोड़ उसने
कमाना सीख लिया था
अपनी ज़िम्मेदारी का
निर्वाह करना सीख लिया था
वो बच्चा उतनी देर में मुझे
सीखा गया जीवन का सार
इतनी कठिन परिस्थितियाँ देख कर
भी उसने नहीं मानी थी हार
ये सोच मैंने किया अपने जीवन पर पुनर्विचार

बस यहीं पछतावा रहता है के
उस वख्त मैं उस बच्चे के लिए
उस से ज़्यादा कुछ कर नहीं पाई
पर यही दुआ रहती है के
हर बहन को मिले ऐसा भाई
और ऐसे भाई को सारी ख़ुदाई
मैं अब जब वह से गुज़रती हूँ
तो मुझे दिखता नहीं
यहीं आशा करती हूँ
के काश किसी काबिल ने उसका हाथ थाम कर
उसके जीवन का कर दिया हो उद्धार
यहाँ बहुत ऐसे भी हैं जिनकी कोई औलाद नहीं
और कितने ऐसे भी जिनकी किस्मत में माँ की गोद नहीं
मेरा भी एक सपना है , के मैं भी एक दिन किसी को अपनाकर
ले आउंगी अपने घर में बहार

जब भी तुम घिरे हो मुसीबत में मेरे यार
तब कर लेना इस कविता पर पुनर्विचार
कितनी भी कठिन परिस्थिति हो आसानी से कट जाएगी
और मेरी इस कविता को तुम पढ़ना चाहोगे बार बार

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