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एक बात बोलू

कविता- एक बात बोलू
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एक बात बोलू..
क्या जरूरत थी,
एक फोटो के खातिर-
इतना सजने कि!

जो अपनी सुन्दरता से
चांद को भी कायल करदे,
जग के सब अन्धो को भी
अपनी जुबां से घायल कर दे|

उसको चार दिवारी मे रखकर,
कई घंटो का समय लगाकर,
नख से लेकर शिखा तक,
ले ली फोटो-
हर विधि से उसे सजाकर|

मेरा दिल कह रहा है,
इन्हें दिल मे रखलू,
इस मट्टी के मूरत को,
दिल मे भगवान बनाकर|

पूजा करलू,
पूजा की थाल सजाकर,
क्या कर जाऊं इनके लिए,
आखो मे छवि, दिल मे श्रध्दा,
इनको अपनी हाथों मे रखू,
पूजा की थाल सजाकर|
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———-ऋषि कुमार “प्रभाकर”——-

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