एक सुनहरी धूप थी तुम ओ सखी !! Pragya 3 years ago एक सुनहरी धूप थी तुम ओ सखी ! पर गैर की टुकड़ी में तुम जा मिल गई । ना सोच पाई मैं ना संभल सकी बस अकेली थी अकेली रह गई ।।