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एक स्त्री

एक स्त्री!
उड़ेल देती है सारा स्नेह
खाना बनाने में।
सभी की पसंद
नापसंद
का ध्यान रखते रखते,
खुद को क्या पसंद है
भूल ही जाती है।

एक स्त्री!
सबको स्नेह से खिलाने भर से ही
तृप्त हो जाती है।

एक स्त्री!
खाना बनाने में
उड़ेलती है प्रेम।

सुगंध, स्वाद से भरपूर
वह भोज परसने से पहले ही
स्नेह की सुगंध से सभी को कर देता है सरोबोर
और किसी ना किसी बहाने
कुछ खोजते
बारी बारी से
क्या बना होगा का अंदाज़ा लगाते प्रियजन
आ ही जाते रसोई में।

गंध को नथुनों में भरकर
आंखों को तृप्त कर
जब वो लौटते है
खाना परोसे जाने के इंतजार में।
तो
एक स्त्री !

होंठो पर मुस्कुराहट
दिल में सुकून भर कर
परस देती अपना दिल भी
सारी थकान भूल कर ।

निमिषा सिंघल

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