वो जमीं आसमां भी दूर रह के मिलते रहे
हम अपने फासिलों में रहके बस तड़पते रहे।
हमारे बीच खामोशी की नदी बहती रही
हम किनारों की तरह वैसे साथ चलते रहे।
जरा सा जिक्र ही छेड़ा था उनके वादों का
वो सर झुका के बेबसी से हाथ मलते रहे।
लबों तक आ के बर्फ हो गई कितनी बातें
लफ्ज अंगारे से बनकर जुबां पे जलते रहे।
हवा हम दोनों के जिस्मों की छुअन लाती रही
ऐसे महसूस हम इक दूसरे को करते रहे।
उदास नजरों से उठकर चले गए वो तो
उनके कदमों के निशां देर तक सिसकते रहे।
~~~~~~~~~~~~~~~~~सतीश कसेरा