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ओडिशा यात्रा -सुखमंगल सिंह

यात्रायें सतयुग के सामान होती हैं और चलना जीवन है अतएव देशाटन के निमित्त यात्रा महत्वपूर्ण है | मानव को संसार बंधन से छुटकारा पाने हेतु जल तीर्थ की यात्रा करना चाहिए – सुखमंगल सिंह sukhmangal@gmail.com मोबाईल -९४५२३०९६११
यात्रायें हमेशां ज्ञान -उर्जावृद्धि में सहायक होती है – कवि अजीत श्रीवास्तव
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मूल रूप से Sukhmangal Singh ने साझा किया
यात्रायें सतयुग के सामान होती हैं और चलना जीवन है अतएव देशाटन के निमित्त यात्रा महत्वपूर्ण है | मानव को संसार बंधन से छुटकारा पाने हेतु जल तीर्थ की यात्रा करना चाहिए – सुखमंगल सिंह sukhmangal@gmail.com मोबाईल -९४५२३०९६११
यात्रायें हमेशां ज्ञान -उर्जावृद्धि में सहायक होती है – कवि अजीत श्रीवास्तव
गाड़ी तीन घंटे बिलम्ब से चल रही थी जिसकी सूचना रेल प्रसारण यंत्र से किया गया | साथ में दो लोगों के रहने से राह बोझिल नहीं हुई | फिर क्या था कि दस बजे सूचना प्रसारित हुई कि रेलगाड़ी दो घंटे और बिलम्ब से है |
चाह यह नहीं कि सिर्फ मेरा नाम पहुंचे |
चाह यह कि पूरे विश्व में हिंदी का सलाम पहुंचे ||
हमारा यही मिशन है | इस मिशन में कठिनाइयों की चर्चा के लिए कोई स्थान नहीं है |
उड़ीसा के लोग बड़े प्यारे हैं मैं सन २०१५ में भी गया था सपत्नीक |श्री जगन्नाथपुरी और ढेंकानाल तक |
उड़ीसा संपर्क क्रान्ति रात्री १२:३० बजे मुगलसराय आई | एस ५ में लोअर वर्थ -९ और १२ पहले से ही रिजर्व था | हम दोनों बैठ गए |
घर से दिव्य मकुनी बाटी बनवाकर सफर के लिए रख रखा था हम दोनों ने उसे खाया और एक गुण खाकर पानी जमकर पिया | खैनी जमी ! कुछ बातें हुईं और नीद लगने लगी हम दोनों अपने अपने वर्थ पर सो गये |
रात्रि के तीन सवा तीन के लगभग बीच में जग गया था ,उसी समय फ्रेश हो लिया था फिर लेता तो नींद लगी और खुली ८:३० पर सुबह | देखा मित्र यात्री कवि अजीत श्रीवास्तव डायरी में कुछ लिख रहे थे | सायद उस फेस बुक से सम्बंधित ! जिस रचना को मेरे मोबाइल से देखा था | लिखा था (नाम न लेते हुए ) मैं समस्या देता हूँ,समाधान नहीं |मुझसे बढ़के कोई इंसान नहीं | देखकर उस समय मित्र मुस्कराये ! कुछ बोले नहीं |
चाय…चाय..चाय गरम चाय ! चाय वाला आया | हम दोनों ने चाय पी | खैनी जमी |
यात्री संगी ने कहा -सुखमंगल जी कुछ लोगों ने फेसबुक को बन्दर के हाथ अस्तूरा समझ लिया है | ऐसों को कोई टिप्पड़ी नहीं दी जाती और एक कागज पर लिखकर मुझे दिया –
जो समस्या देते हैं ,समाधान नहीं !
ऐसों से बढ़के ,कोई शैतान नहीं ||
कविता करना ,इक तपस्या है !
कविता, कविता है परचून की दूकान नहीं ||

हिंदी के लिए प्रचार – प्रसार की सबसे अधिक जरूरत यदि कहीं है तो वह है अहिन्दी भाषी क्षेत्र में ,इसी उद्देश्य को मिशन के तहत अहिन्दी भाषी क्षेत्रों के भीतरी इलाकों में पहुंचकर हिंदी की अलख जगाने का कार्य विगत दो वर्षों से कर रहा हूँ | जो हिंदी आज विश्व फलक पर नंबर दो पर है ,उसे नंबर एक का दर्जा दिलाने में यह मिशन सफल होगा यही आशा है |
इसका मूल कारण यह है कि अहिन्दी भाषी क्षेत्रों के लोग आज विदेशों में बड़े-बड़े पदों पर अधिकाधिक् मात्रा में मौजूद हैं |
इस मिशन में अखिल भारतीय सद्भावना एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुखमंगल सिंह और कार्यकारी महासचिव अजीत श्रीवास्तव लगे हैं |
ढेंकानाल (उडीसा ) प्रधान महाप्रबंधक ,दूरसंचार कार्यालय के हिंदी पखवाड़ा -२०१७ में हम (दोनों ) को आमंत्रण मिला ! मुझे मुख्य वक्ता और अजीत श्रीवास्तव को सम्मानित अतिथि के रूप में (काव्यपाठ )करने हेतु |
सितम्बर १२,२०१७ को हम पहुचे मुगलसराय जं० सायं ०६ बजे | संपर्क जन क्रान्ति एक्सप्रेस का समय ०७:३० का रहा |
एक बार तो मैंने सोचा कि उन श्रीमान् को यह रचना फेसबुक पर भेज दूं लेकिन अजीत जी ने मना कर दिया ,कहा कि ऐसा लिखने वालों को भगवान भरोसे छोड़ देना चाहिए | नोटिस
में नहीं लेनी चाहिए | ऐसे लोगों की फेस बुक पर भारी भीड़ होती है जो लोगों के बहुमूल्य समय खराब करते हैं |
चाय वाला घुमते -घामते फिर आया | एक – एक चाय हम दोनों ने और पी | खैनी जमी |
उघर कम्पार्टमेंट में लोग अपनी – अपनी चर्चाओं में दो तीन के ग्रुप में मशगूल थे | सफर
में चर्चाएँ खूब होती हैं अत्यधिक महत्वपूर्ण होने के बावजूद वे सभी चर्चायें सफर समाप्ति
के साथ छूट जाती हैं | मैंने कागज के सफेद पन्ने बहुत सारे रखे थे उन्हें बी आई पी अटैची
से निकाला और हो रही चर्चा के मूल को नोट करते चला |
दोनों तरफ पहाड़ और झाड़ियाँ | कभी जंगल रहे होंगे |काटे गए हैं ! कहीं कहीं बस्तियां है | अगल बगल की जमीन की मिटटी लाल | मौसम कुछ-कुछ कोहरा कुछ -कुछ धुप |
लोगों की चर्चा आरक्षण पर केन्द्रित थी | हम दोनों लोग श्रोता की भूमिका में रहकर बात को गंभीरता से सुन रहे थे |
धुंध ! अगल -बगल | चिमनिया पीठ पर छोटे -छोटे बच्चे | मजदूरी करने की कतार में आदिवासी महिलाएं | नजर जहां तक दोनों ओर जाये ,पगडंडियों पर आते -जाते आदिवासी मजदूरों की बड़ी कतारें | सर पर गठरी में क्या है ,कुछ पता नहीं ! हाँ हाथों में जलावन लकड़िया और कोयले ! छोटे बच्चे पीठ पर उससे बड़े बच्चे पैदल | ट्रेन टाटा नगर आ पहुंची | आधा घंटे रुकी और फिर अपने गंतब्य को चल दी |
दोनों बोतलें जो खाली हो चलीं थीं में पानी की व्यवस्था हमनें टाटा नगर में क्र ली | स्टेशन पर कुछ गमले दिखे बचा हुआ पानी उन्हीं गमलों में उड़ेल दिया था | दो-दो मकुनी बाटी, नीबू के अचार के साथ खाया गया | गुड खाने के बाद पानी पेट भर पिया | एक-एक चाय के बाद खैनी जमी | अब ट्रेन की सीटी बजी |उड़ीसा संपर्क क्रान्ति आगे बढ़ी | चर्चा थी कि थम ही नहीं रही थी | चर्चा में सामिलों को भी भुवनेश्वर ही जाना था |
राजनीति ने सत्तर सालों में कुछ ऐसीस्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है कि आरक्षण पर बोलना किदो भाग होना | कहीं देखा गया है कितनावग्रस्त स्थितियां भी पैदा हो जाती हैं |यह अच्छी बात रही कि ट्रेन में ऐसा कुछ नहीं रहा | सभी के मुखर स्वर आरक्षण को आर्थिक आधार पर दिये जाने के पक्ष में रहे |-sukhmangal singh
sukhmangal@gmail.com

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