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कविता- संवेदना

कविता- संवेदना…
तू कौन है ..!

तू कौन है..! संवेदना !
जो अनछुए अनदेखे
पहलुओं को एकाएक
होने का आभाष कराती है !
तू कौन है..!
जो दूसरे की पीडा का
उद्विग्नता का बोध कराती है !
तू वही तो नही …
जो दूसरों की तकलिफों में
आँखे नम कर जाती है !
तू वही बस वही है न !
जो बिना बोले अकारण ही
मन को उदास अवशादित
और हर्षादित कर जाती है !
तू वही तो नही
जो विभत्सता के प्रति
घृणां के रूप में अवांछनीय रूप में
स्वयं ही उत्पन्न हो जाती है !
तू वही है बस वही है..
हर्ष में वीर करूण में कारूण्य
श्रृंगार में आकर्षण जगाती है !
तू वही है न ! तू कौन है !
जो अबला पर होने वाले
अत्याचार के विरूद्ध
सहज ही प्रतिकार की
भावनाओं को उद्वेलित करती है !
तू वही है न !
जो अकारण ही पुरूष के मन में
रूपवती स्त्री को देखते ही
कामुकता का भाव जगा देती है !
तू वही है न ! तू कौन है !
जो अपने वश में कर
व्यक्ति को भला-बूरा
लाभ-हानि नैतिक अनैतिक
तक का बोध नही होने देती !
और ग्लानि भी तू ही तो है !
जो अनर्थ के पश्चात मानव
में सहज ही जाग जाती है !
तू कौन है ! कौन है तू !
वही तो नही जो मानव को
अमानव बनाती है !
जगे को सुलाती है
और सोय़े को जगाती है !
तू बस वही है न ..!
जो जीवन में जीवन का प्रमाण है
सर्द गर्म का कठोर नर्म का
मधुर का तीखे का आभाष कराती है !
तू है तो ग्यानेंद्रियां सक्रीय है
तुम्हारे नही होने का अर्थ
नि:संदेह मृत्यु ही है….||
उपाध्याय…

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