सिंहवाहिनी मां दुर्गा**
सिंहसवारी मां अष्टभुजाधारी पालनहारी–१ ममतामयी सौभाग्य प्रदायिनी भवमोचनी–२ वरदायिनी विमल मति देती पीडा़ हरती–३ जगजननी बारंबार प्रणाम है प्यारा धाम–४ करूं विनती मां झोलियां भरती…
सिंहसवारी मां अष्टभुजाधारी पालनहारी–१ ममतामयी सौभाग्य प्रदायिनी भवमोचनी–२ वरदायिनी विमल मति देती पीडा़ हरती–३ जगजननी बारंबार प्रणाम है प्यारा धाम–४ करूं विनती मां झोलियां भरती…
आँख मलती जग रही बिटिया मुँह बनाती | ठप्प दुकान नहीं कोई ग्राहक बुरा समय | गलियाँ तंग आवाजाही हो रही चुभे दीवार | अशोक…
झूमते पात फागुनी बयार में झूमते गात वासंती तानी खेतों पर चादर फूली सरसों दहके वन केसरिया वितान फूला पलाश महके वन महुआ से, अंबुआ…
रोते हो अब काश। पकड पाते जाता समय। अँधेरा हुआ ढल गई है शाम यौवन की। रात मिलेगा प्रियतम मुझको चांद जलेगा। आ जाओ तुम…
बेपरवाह है फिरता दर दर रमता जोगी। चलते जाओ यही तो है जीवन नदिया बोली जनता से ही करता है सिस्टम आंखमिचोली। घूमो जाकर किसी…
कदम-दर-कदम है ठोकर लगी। ज्ञान की जोत दिल में है निश दिन जगी। फिर भी ना बुद्धि तुम्हारी बढ़ी।।
लाॅकडाउन भी देखो बेअसर हो रहा। सारे भारत में कोरोना का बढ़ता कहर हो रहा। रात में नींद आती न दिन में है चैन अब…
प्रस्तुत है हाइकु विधा में रचना :- जिसका जो हो कर्म करे मानव ना करे चोरी जीत ले बाजी हर दांव की वह ना थके…
प्रस्तुत है हाइकु विधा में कविता:- मजदूर हूँ पैदल चल पड़ा घर की ओर विपदा आयी सबने छोड़ दिया मौत की ओर आशावादी हूँ खुद…
जमाने में सबसे निराला है । इसलिए नहीं कि मेरा यार है वो , मन का बड़ा हीं सच्चा और भोला भाला है।।
हर कसम टूट जाते हैं मुहब्बत के एक कसम खाने के बाद। इश्क़ रंग लाता है जुदाई के बाद।।
जेठ का महिना भी अबकी कमजोर लगता है। शायद कोरोना ने इसे भी लाॅकडाउन कर दिया।
कोई वरिष्ठ था कोई गरिष्ठ था कोई पहनके इच्छामृत्यु का चोला। पुत्र मोह के चादर में कोई और प्रतिशोध आदर में कोई ले तन मन…
तू मेरा मनमीत है तुझसे मेरे जीवन का हर गीत है तेरा साथ जो हो तो हार भी एक जीत है।
धवल चन्द्र सम उसका चेहरा । कनक कपोल पे एक तील का पहरा। अरुण अधर अनार कली सम।। भृकुटी कमान नजर शर शोभित । कुहू…
होली में होगी ना अबकी हुरदंग। ना पानी ना कीचड़ ना दारु ना भंग खुशियाँ हीं खुशियाँ प्यार का रंग ।।
मात पिता की कर वंदन। सेवा सतत सहित निज तन मन धन। होवे आयु बल विद्या यशवर्द्धन ।।
शीश जटा एक बेणी लटकत लटकत लट लटकन मुखचंद्र पे वारिद ऐसे लुकछिप खेल करत हो जैसे।।
जिसकी सबको बड़ी जरूरत है अगली पगली जैसी तैसी दिल की खूबसूरत माँ ममता की मूरत है ।।
अगर मैं होती गरीब किसान की उपजाऊ भूमि बंजर होने पर जरूर दुत्कार दी जाती मैं होती कुमार के चाक मिट्टी उसी के दिए आकार…
हथेली पर सपनों की घड़ियाँ साकार नहीं। नदी के पार रेत के बडे़ टीले हवा नाचती। अशोक बाबू माहौर
हथेली पर सपनों की घड़ियाँ साकार नहीं। नदी के पार रेत के बडे़ टीले हवा नाचती।
अच्छे दिन…! अच्छे लोग तो खुश हो ही रहे हैं अच्छे दिनों से ..!. आशा बहुत अच्छा जो हो रहा है और भी होगा…! बुरे…
उडता पंछी नील गगन फैला विशाल हाथ।
कभी रुलाया है, तो कभी हंसाया भी है, जिन्दगी तुझसे कोई शिकवा नहीं है, कभी खोया है, तो कभी पाया भी है
तेरी देहलीज टपने खातिर काफी दिनों से कुछ किया ही नहीं। ऐसा लगा मानो जिंदा रहके भी इस दौरान मैं जिया ही नहीं।
ज़िन्दगी तो हमारी गुज़री…. मगर, गुज़र…..गुज़र…..कर गुज़री….. ……………..!! …
डूबती नाव अंबर सागर में दूज का चाँद। पिघल-रहा लावा दिल अंदर आँखें क्रेटर । सिसकी हवा उड़ चल रे पंछी नीड़ पराया । यादों…
चलो चले … किसी नदी के किनारे किसी झरने के नीचें | जहाँ तुम कल कल बहना झर झर गिरना और… और मैं मंत्रमुग्ध हो…
” मै ही तो हूँ- तेरा अहम् ………………………….. मै ही तो हूँ तुम्हारे अंतरात्मा में रोम रोम में तुम्हारे | मैं ही बसा हूँ हर…
चलो चले … किसी नदी के किनारे किसी झरने के नीचें | जहाँ तुम कल कल बहना झर झर गिरना और… और मैं मंत्रमुग्ध हो…
अब और परीक्षा नही… अब और परीक्षा नही प्रतिक्षा नही करेंगे | किया नही पर प्रीत हो गई उल्टी जग की रीत हो गई |…
” मन के मोती…” पानी के बुलबुले से माला के मोतियों से बिखरता है टूट जाता है | बनता है मन का मोती बन कर…
कविता- संवेदना… तू कौन है ..! तू कौन है..! संवेदना ! जो अनछुए अनदेखे पहलुओं को एकाएक होने का आभाष कराती है ! तू कौन…
तू कौन है ..! तू कौन है..! संवेदना ! जो अनछुए अनदेखे पहलुओं को एकाएक होने का आभाष कराती है ! तू कौन है..! जो…
फूल से सीख लो यारों जीवन का फलसफा, कांटों में भी मुस्कुराने का अंदाज बयां करते हैं। …
सुरमा लगाया था आँखों में जिसका नज़रें मिलते ही खफा हो गए
रिश्ते तो अब बौने हो गए है ख्वाब तो बस बिछोने हो गए है
वक़्त का तमाचा हाथ क्या पूछे
किसकी हसरत कैसी हसरत अपने तो दुखों को मिली बरकत उसे गुनाहगार कैसे कह दो सब थी अपनी ही वैसी हरकत
जिल्द बिन किताब का फूल बिन हिज़ाब का रातों का नहीं ख्वाब हूँ आफताब का
न सही गम सही खुद बन मरहम सही
उन्हें ज़िद थी न हारने की कारण बन गई हार का
घर के अंदर घर नहीं मिलता कोई सुखनवर नहीं मिलता
बिक गया वो शक्स भी जिसे हम सौदागर समझते रहे
न सूरत में न सीरत में सब कुछ मन की जीनत में
कहाँ गई वो हवाएं कहाँ गई वो फ़िज़ाएं बिखर गई अब वफ़ाएं
हर किताब की कहानी पन्नो की मेहरबानी
सब कुछ वैसा ही सब कुछ पैसा ही
वीराना अपना वीराना बेगाना वीराने को कौन जाना
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