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कविता

अब और परीक्षा नही…

अब और परीक्षा नही
प्रतिक्षा नही करेंगे |
किया नही पर प्रीत हो गई
उल्टी जग की रीत हो गई |
और तितिक्षा नही वरेंगे ||
यह अपराध किया ईश्वर ने
जिसने रचा तन मन मानव का |
जिसने प्रीत और बैर बनाया
ओ न सहे तो हम क्यों सहेंगे !!
अब और परीक्षा नही सहेंगे
प्रतिक्षा नही करेंगे |
जब तक प्रीत नही थी
बैरी ये कब था संसार !
इसे नही क्यों भा सकता
दो पुण्य पथिक का प्यार !!
हम कैसे है हम ही जाने
स्वयं स्वयं को ही पहचाने
और किसी की कोई समीक्षा
हम अपने सर धरेंगे |
अब और परीक्षा नही…!
रोका कौन बहती धारा को
हवा बासंती आवारा को !
अब रोके से हम न रुकेंगे ||
अब न रुकेंगे मिल के रहेंगे |
दुख सुख दोनो मिल के सहेंगे
एक दूजे में विलिन हो कर
जहाँ के बंधन तोड चलेंगे
विरह वेदना से निकलेंगे ||
अब और परीक्षा नही
प्रतिक्षा नही करेंगे नही सहेंगे ||
उपाध्याय…

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