कागज़ की कश्ती लेकर,
दरिया पार करने चल दिए।
हम कितने नादान थे,
अरे! यह क्या करने चल दिए।
बचपन तो नहीं था ना,
कि कागज़ की कश्ती चल जाती,
भरी दोपहर में यह क्या करने चल दिए।
दरिया बहुत बड़ा था,
आगे तूफ़ान भी खड़ा था,
तूफ़ानों में कश्ती उठाकर,
कागज़ की चल दिए।
हम भी कितने नादान थे,
अरे! यह क्या करने चल दिए।।
____✍️गीता