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काश ऐसा होता

क्यों है ये जात-पात की ऊंची दीवार।
धर्म के नाम पर हर कोई लड़ने को तैयार।

सब एक ही तो है,
ये हवा जिसमें हम सांस लेते हैं।
ये पानी जो हम सभी पीते हैं।
एक ही तो है,
यह धरती जहां हम महफूज़ रहते हैं।
फूलों की खुशबू सभी महसूस करते हैं।
एक ही तो है,
सभी के खून का रंग।
जीवन मृत्यु का ढंग।
एक ही तो है,
फिर क्यों धर्म को लेकर आपसी लड़ाई।
मैं हिंदू, मैं मुस्लिम, मैं सिख्ख, मैं ईसाई।
इस ‘मैं’ के दायरे से निकल, हो सभी में प्यार।
क्यों है ये जात-पात की ऊंची दीवार।
धर्म के नाम पर हर कोई लड़ने को तैयार।।

काश ऐसा होता,
एक ही धर्म हो,
मानवता का।
एक ही जात हो,
समानता का।
काश ऐसा होता,
एक ही ईश्वर हो,
सच्चाई का।
एक ही देवालय हो,
अच्छाई का।
काश ऐसा होता,
आओ असमानता रूपी गुलामी की जंजीरें तोड़ दें।
सभी को समानता के एक सूत्र में जोड़ दें।
आओ संगठित होकर एकता की सोच को करें साकार।
क्यों है ये जात-पात की ऊंची दीवार।
धर्म के नाम पर हर कोई लड़ने को तैयार।

देवेश साखरे ‘देव’

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