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कितना भी ज़िद्दी बन जाऊँ

कितना भी ज़िद्दी बन जाऊँ,
माँ थोड़ा भी न गुस्सा होती है,

एक निवाला अपने हिस्से का खिलाकर
माँ फिर चैन से सोती है।।

-मनीष

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