Site icon Saavan

किसी को साधन नहीं, दो रोटी क्या दामन नहीं

किसी को साधन नहीं, दो रोटी क्या दामन नहीं,
कोई बस्ती में है बचपन से मस्ती के पैमानों की,

बहुत बदल गई है दुनियाँ रस्में रीत गुनाहों की,
तोड़ दीवारें लुट जाती हैं अस्मत यहां कुवारों की।।
राही (अंजाना)

Exit mobile version