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कुछ इस तरह से भी मर जाता हूँ मैं।

कुछ इस तरह से भी मर जाता हूँ मैं।
जब सच होके झूठ से डर जाता हूँ मैं।।
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उम्र भर की दस्ताने जब याद आती है।
आसुंओं सा आँखों में भर जाता हूँ मैं।।
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तरक्की शोहरत और दौलत की चाह में।
अपनों को छोड़कर ये किधर जाता हूँ मैं।।
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दिनभर की मेहफिलो का अंदाज़ अलग है।
शबे तन्हाई में टुटके न बिखर जाता हूँ मैं।।
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हमको नहीं है वैसे कोई आवाज़ देने वाला।
पर जब भी तुम दिखते हो ठहर जाता हूँ मैं।।
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सच है हम भी माँगते है दुआएँ जिंदगी की।
पर इसके पहलुओं को देख सिहर जाता हूँ मैं।
@@@@RK@@@@

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