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कुछ तो दायरे हो

कुछ तो दायरे हो , जिसमे रहना जरूरी है
जिस के अंदर खुद को भी रखना जरूरी है

प्रगति के हम एक कारीगर है मगर
वक़्त के साथ कारीगर बदलते रहना भी जरूरी है

कुछ क़र्ज़ हमारे ऊपर खुद का भी है
अदा उसका होते रहना भी जरूरी है

अनंत है इच्छाए उस पर कई दौड़
कुछ दौड़ में पिछड़ते रहना भी जरूरी है

ज़िंदगीकी कोई डोर नहीं है तेरे हाथों में
हर साँसों को जीते रहना भी जरूरी है

राजेश’अरमान’

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