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कुछ बूंदे

तस्वीर तेरी रात भर तकती रही दो बोझल आँखें।

पिघले हुए कुछ ख्वाब, आंसूं बनकर बहते रहे ।।

 

आसमान में बेख़ौफ़ उड़ने की अजब ज़िद थी उन्हें ।

कुछ परिंदे, जो तल्ख हवा के नश्तर सहते रहे ।।

 

वो बूंदे जो खो गयी इश्क के समंदर में कहीं ।

कुछ मुसाफिर, जो रहगुज़र को ही मंज़िल कहते रहे ।।

 
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