मंत्र मुग्ध हैं यशोदा देख ,
अठखेलियाँ घनश्याम की_
पाकर नंद भी उमंग से धरणी पर ,
नृत्य करते दुलार करते श्याम की_
शताब्दियाँ भी मुखरित थी अलौकिक छवि ,
देख देवों के देव देवकिनदंन की_
घटाएँ भी जमकर बरस रही थी
जैसे चाहती हो छूना काया नंदपुत्राय की_
बीत गया वो द्वापर यूग पर बिसराये ना बिसरत हैं ,
वो महा भारतीय न्यायशील का न्याय,
वो चक्र सी पलटती काया धरा की अगधाय की_
-PRAGYA-