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कोख़ से मैं कितना बचती रही

कोख़ से मैं कितना बचती रही,
दुनिया में ला कर तुमने ठुकराया,

शर्म मुझे है ऊपरवाले की इस रचना पर
जहाँ जिस्म के भूखों को मैंने कदम-कदम पे पाया।।

-मनीष

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