रूप अद्वितीय बिखराती हो,
जब सामने तुम आती हो।
काले घने केश लहराती,
आंखों से जादू सा चलाती।
एक हंसी उन्मुक्त तुम्हारी,
बेचैनी दिल में दे जाती।
कौन हो तुम?
क्या ख्वाब कोई?
या मीठा सा एहसास कोई,!
सूरज चंदा का रूप लिए
तुम रूप महल की रानी हो।
पाक़ीज़ा सा ये रूप तेरा,
क्या मेरी कोई कहानी हो?
निमिषा सिंघल