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क्या बयॉ करे

क्या बयॉ करे……

क्या बयॉ करे अपने लफ्जो से
हंसकर दर्द छुपाता हूँ
दिल के गहरे घाव को
अपने किस्मत को मैं कोसता हूँ
सुबह शाम दर्द को झेलता हूँ

क्या बयॉ करे अपने लफ्जो से
खुश रहना खुश रखना चाहता हूँ
फिर भी ख़्वाहिशे अधुरी हैं
दिल का दर्द छिपा सीने में
होठो से मुस्कान बिखेरता हूँ

क्या बयॉ करे अपने लफ्जो से
पागल जमाना समझता हैं
दुःख सुख हैं मेरा साथी
मैं उसका हूँ मित्र पुराना
जीवन की डोर पकड़ कर जीता हूँ

क्या बयॉ करे अपने लफ्जो से
मैं ही अकेला अभागा नहीं
संसार में बहुत से पीडित हैं
सुख को महसूस करता हूँ
दुःख भागे चले आता हैं

क्या बयॉ करे अपने लफ्जो से
जीवन की काली पूड़िया को
हर रोज मैं पीता रहता हूँ
क्या करे शिकायत इस जमाने से
बस जीता हूँ अपनो से चोट खाने के लिए…

महेश गुप्ता जौनपुरी

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