यहां हर कोई एक दूजे की कश्ती डुबाने को बैठा है,
जान बूझकर ही मासूम सी हस्ती मिटाने को बैठा है,
लत लगी है बस निकल जाऊँ किसी तरह सबसे आगे,
सोंच लेकर यही पीठ पीछे खंजर घुसाने को बैठा है,
मुँह लगाने की मनादि है नफरत इस कदर जान लें,
कमाल देखिये फिर भी सामने से हाथ मिलाने को बैठा है।।
राही अंजाना