गुज़रा ज़माना याद दिलाता है ख़त।
अब बीता ज़माना कहलाता है ख़त।
रूठे को मनाना, हाले-दिल बताना,
अपनों को अपना बनाता है ख़त।
ना हुई कभी मुलाक़ात ना कोई बात,
दो अंजानो को करीब लाता है ख़त।
जो बात ज़बान ना कर पाये बयान,
तेरे – मेरे जज़्बात मिलाता है ख़त।
जवाब का इंतजार, करता बेकरार,
एक नया एहसास दिलाता है ख़त।
देवेश साखरे ‘देव’