ख़ुदा पर जो भी बंदा यकीं दिखाता है।
तलातुम में फँसी वो सफीना बचाता है।
कठपुतलीयों की डोर है उसके हाथों में,
जाने कब, कहाँ, कैसे, किसे नचाता है।
जो किरदार उम्दा निभा गया रंगमंच में,
खुशियों का इनाम वो यक़ीनन पाता है।
नसीब का लिखा, ना टाल सका कोई,
किये का हिसाब वो ज़रूर चुकाता है।
दौलत ना सही, पर दुआएं कमाई मैंने,
बुरे वक़्त में ‘देव’ दुआएं काम आता है।
देवेश साखरे ‘देव’
तलातुम- समुद्री तुफान, सफीना- कश्ती