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खुद की भागम -भाग

खुद की भागम -भाग
उसपे रस्ते आग ही आग
कुछ शीतल भी है
अम्बर के नीचे
कुछ शांति भी है
अम्बर के नीचे
अपने ही हाथों से
हमने खुद मानव
से बदल कर बना दिया
मानवरूपी मशीन
जिसके हर कलपुर्जे
हमारी प्रगति तो दिखाते है
पर अंदर की घुटन को
बस हम हरदम छुपाते है
क्या फिर मशीन से मानव
बनना संभव नहीं है
यदि हो सके तो ढूंढे
खोई हुई ज़िंदगी को दुबारा
कहीं हमने खुद ही उसे
कहीं दबा कर तो
रख नहीं दिया है
हम सचमुच जी रहे है
या जीने की कोशिश कर रहे है
यदि कोशिश है तो फिर ज़िंदगी
दफ़न कर हम साँसें हवा में
बिखेर रहे है ,ले नहीं रहे
साँसें लेने से भी घुटन
सी होती है अब ,क्योकि
खुद की भागम -भाग
उसपे रस्ते आग ही आग
राजेश’अरमान’

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