तेरे कलाम में हर पहर पढ़ती रहती हूं
तेरी हर नज्म में खुद को ढ़ूढती रहती हूं
इक चाहत थी कि तुझसे किसी दिन मिलूं
इसी ख्वाहिश में हर लम्हा गुजरती रहती हूं|
तेरे कलाम में हर पहर पढ़ती रहती हूं
तेरी हर नज्म में खुद को ढ़ूढती रहती हूं
इक चाहत थी कि तुझसे किसी दिन मिलूं
इसी ख्वाहिश में हर लम्हा गुजरती रहती हूं|