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गीतिका

“गीतिका”

मन को छोटा मत कर मानव
तन्मय हो धर्म निभाता चल |
सोया जग घोर तिमिर तो क्या
तू मन का दीप जलाता चल ||मन को..
क्या होगा क्या होने वाला
ये सोच के ना घबराता चल |
जो बीत गई ओ बात गई
उस कल पर ना पछताता चल ||मन को..
जो भटक गये है नीज पथ से
उनको तू पथ बतलाता चल |
अंधे लंगडे गूंगे बहरे को
अपना संदेश सूनाता चल ||मन को..
हो भाग्य नही अनुकूल भी तो
कर से करतब दिखलाता चल |
संघर्ष की वेदी पर चढ कर
तू पत्थर को पीघलाता चल ||मन को..
सोना तप कर पावन होता
इसलिए तू आग लगाता चल |
फड शेषनाग का डोलेगा
धरती में भी होगी हलचल || मन को..
हे क्रांति पथिक अपने पथ को
निष्कंटक राह बनाता चल |
धर धैर्य अग्रसर हो पथ पर
जो आये गले लगाता चल ||मन को..
उपाध्याय…
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