घनघोर बादल गरज रहे हैं
सर्द हवाओं के झोंके
मन को भिगो रहे हैं
बीत गई अब तपन भरी रातें
सर्द दिनकर’ सुबह को नमन कर रहे हैं
गुलदाऊदी के पुष्प अब खिलने को हैं
कनेर के पुष्प अलविदा कहने को हैं
अब आएंगे गुलाब में काँटों से ज्यादा पुष्प
क्योकिं अब गुलाबी सर्दियाँ आने को हैं।