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गुलाब जल

कविता- गुलाब जल
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चाहत न थी,
अब जीने की
बस तुम्हें देखा
दुआ करने लगा जीने की,

साकी दे-
प्याला तो,
नशा चढ़े|
भर नजर-
देख ले यह हसीना,
जाम से बढ़कर नशा चढ़े,

नजर से नजर मिला दे,
पागल भी घायल हो जाये,
मै देखा नही अप्सरा मेनका को,
मुस्कुरा दे यह नजर झुकाकर
जन्नत की परियां भी कायल हो जाये|

यह होठ –
प्रातः की ऊषा है,
खीलती कली में गुलाब है,
आंख की पूतली ऐसे लग रही,
जैसे महताब की चादनी चमक रही|

तुम्हें बनाने में
कितना समय लगाया होगा,
हर काम छोड़ करके
खुदा सबसे पूछ- पूछ के बनाया होगा|

पूर्ण बनाकर तुम्हें
जब गौर से देखा होगा,
देख सुरत को-
खुदा भी बहुत रोया होगा,
चेहरे पर कहीं भी दाग नही है
सच मे!गंगा जल या-
गुलाब जल से चेहरा धोया होगा|
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कवि-ऋषि कुमार ‘प्रभाकर’
पता खजुरी कोरांव प्रयागराज

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