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चूड़ियाँ

बेचकर चूड़ियाँ अपना घर चलाया करती है,

चेहरे पर गम छुपाये कैसे मुस्कराया करती है,

रहती तो है रंग बिरंगे काँच के टुकड़ों के संग,

मगर बेरंग जीवन को यूँही बहलाया करती है।।
राही (अंजाना)

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