सागर के सीने से निकले थे, काल सरीखे नाग।
मुम्बई में बरसाने आये थे, जो जहरीली आग ।।
रण रिपु छेड़ रहा था लेकिन, हम थे इससे अन्जान।
छब्बिस ग्यारह दिवस ले गया, कई निर्दोषों की जान ।।
तांडव करती मौत फिरी थी, शहर में लेने जान।
बरस रहे थे गली गली में, बुझे सन्खिया बाण ।।
कपट भरे दुश्मन के छल को, जब तक समझा हमने।
कितने हुए अनाथ, विधवाएं, खोये भाई और बहनें ।।
दुश्मन की इस धृष्टता का, बदला हमको लेना था ।
हर दुखते फोड़े की पीड़ा को, दुश्मन को देना था ।।
छब्बीस ग्यारह तारीख बना, इतिहास का दुखता पन्ना।
फिर से दोहराया ना जाये ये, ध्यान हमें है रखना ।।
हुए शहीद जो इस तारीख पर, उनको मेरा नमन है।
ऐसे सपूत है भारत माँ के, तभी खुशहाल चमन है ।।
@नील पदम्
26-11-2019