छोड़ कर एक घर को मैं एक घर चला आता हूँ,
जाने कैसे इस सफर को मैं रोज़ दोहराता हूँ,
उलझनों में जिंदगी के कितने तर्क सुलझाता हूँ,
जाने कैसे इस जंग को मैं रोज लड़ पाता हूँ,
रस्म के बन्धन के ताले खोलने की चाह में,
जाने कैसे इस गुनाह में मैं रोज़ फंस जाता हूँ।।
~ राही (अंजाना)