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जख्म

जंग लड़ी थी गहरे जख्म पुराने थे,
रंग लगे थे चेहरे पे गरम छुड़ाने थे,

घाव लगे थे दिल पर सब बेमाने थे,
महबूबा के प्रेम में चरम दीवाने थे,

धुंधले थे पर चेहरे सब पहचाने थे,
आईने से कुछ राज़ मरम छुपाने थे,

चीखे बहुत पर बहरे हुए जनाने थे,
मानो के सबके पास नरम बहाने थे,

यादों के यूँ तो मौसम बड़े सुहाने थे,
झूठ बोल सबको ही भरम भुनाने थे।।

राही अंजाना

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