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जब कभी भी तुमको पुकारा है हमने।

जब कभी भी तुमको पुकारा है हमने।
बस इक मीठे से दर्द को उभारा है हमने।।
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सूनसान राहों पर हुई हो जो कोई आहट।
तो वही उम्मीद वही चेहरा निहारा है हमने।।
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मेरी मौत का ज़िम्मेदार मैं ख़ुद हूँ सच है ये।
की खुद को जिन्दा रख रख के मारा है हमने।।
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हक़ीक़त से जब भी आँखें मेरी चार हुई है।
फिर गलतियों को सौ बार संवारा है हमने।।
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साहिल मुमकिन नही की चाँद तक जा सके।
पर कइयों बार चाँद को ज़मी पे उतारा है हमने।।
@@@@RK@@@@

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