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*जय हो कृषक,जय हो किसान*

खेतों से निकलकर,
राजधानी की सड़कों पर
आ गया है किसान
देखो कितना है परेशान
दिल्ली की सर्दी में,
खुद खाना बना रहा
खुले अंबर के नीचे
देखो रात बिता रहा
सड़कों पर बैठा है उदास,
लेकर आया है कुछ आस
तुम डटे रहो, तुम लगे रहो
हो पूरी तेरी हर कामना
क्योंकि शुद्ध है तेरी भावना
सबको अन्न देता,
अन्नदाता तू है महान
देश की मिट्टी की तू शान,
जय हो कृषक,जय हो किसान

*****✍️गीता

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